पिछले छः वर्षों में 17 से 18 करोड़ लोगों का छिन गया रोजगार

कृष्णकांत

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लॉकडाउन के बाद पहले दो हफ्ते में 12 करोड़ नौकरियां छिनी थीं. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इकोनॉमी (सीएमआइई) के सर्वे के हवाले से योगेंद्र यादव ने लिखा था कि “इस बात को हजम करने के लिए बड़ा जतन करना पड़ेगा कि बीते दो हफ्ते में करीब 12 करोड़ भारतीयों ने रोजगार गंवाया है. मान लीजिए कि इनमें से 8 करोड़ लोग ऐसे हैं कि उन्हीं की कमाई पर उनका परिवार निर्भर है तो देश के 25 करोड़ परिवारों में से एक तिहाई के पास अभी जीविका का संकट आ खड़ा हुआ है.”

CMIE ने ही अगस्त में फिर रिपोर्ट दी कि अप्रैल से जुलाई के बीच 1.89 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई. रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई महीने में 50 लाख नौकरियां चली गईं. पिछले साल के औसत के मुकाबले इस साल अगस्त तक 1 करोड़ 90 लाख सैलरीड लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. लोकसभा चुनाव के बाद एक रिपोर्ट आई थी कि पिछले पांच साल में सिर्फ 7 प्रमुख सेक्टर में 3.64 करोड़ नौकरियां जा चुकी हैं.

अब कुल जोड़ लीजिए. 12 करोड़ + 2 करोड़ + 3.64 करोड़ = 17.64 करोड़, यानी जो पार्टी हर साल दो करोड़ रोजगार देकर देश को विश्वगुरु बनाने का वादा करके सत्ता में आई थी, वह मोटे तौर पर 17-18 करोड़ नौकरी छीन चुकी है. ये आंकड़े मीडिया सर्वे पर आधारित हैं. अगर सरकार में बैठे लोग सही आंकड़ा जारी कर दें तो शर्म से खुद ही मर जाएं.