एक फ़िल्म रिलीज़ हुई.
फ़िल्म में आमिर खान, करीना कपूर मुख्य भूमिका में हैं.
फ़िल्म का नाम है- लाल सिंह चड्ढा.
**इसके आगे आपको जो मालूम चल रहा है, वो शायद स्पॉइलर की श्रेणी में आ जाए. इसलिये, एहतियात, बरतें.**
चूंकि सेंट्रल कैरेक्टर का नाम हमें शुरू में ही मालूम चल जाता है, हमें पहले 20 मिनट में समझ आ जाता है कि ये फ़िल्म एक बायोग्राफ़ी है.
लाल सिंह चड्ढा एक ट्रेन में सवारी कर रहा है.
उसे कहीं से कहीं पहुंचना है.
लेकिन उस रास्ते में वो लोगों से बात करता है. यहीं से सारी कहानी उपजती है.
कहानी:
लाल सिंह चड्ढा असल में विकलांग (आप चाहें तो दिव्यांग कह सकते हैं) है. लेकिन उसकी मां (मोना सिंह) इस बात में विश्वास रखती है कि उसका बेटा किसी से भी कम नहीं है. यहीं से ‘लाल’ स्थापित होना शुरू होता है. यहीं से ‘लाल’ की कहानी शुरू होती है.
लाल सिंह के जीवन में ऐसे लोगों की ज़रूरत मालूम देती है, जो उसे आगे बढ़ने के लिये धक्का देने के लिये ज़रूरी होते हैं. डॉक्टर, लड़की, बराबर हैं. उसे दौड़ने के लिये उसकी दोस्त रूपा ने कहा था – “भाग, लाल, भाग!” ये इस फ़िल्म का सूत्रवाक्य बनके आगे आता है. हम इसे छोड़ नहीं सकते.
‘भाग, लाल, भाग!’ – ये बात उससे अलग-अलग तरीक़े से, उसके कई दोस्त कहते हैं. वो अपने इन सभी दोस्तों से भयानक प्रेम करता है. लाल सिंह अपनी पूरी यात्रा में हमें सिखाता है कि हम लोगों के साथ भयानक किस्म का प्रेम कर सकते हैं. भयानक प्रेम. बस!
अंत में मालूम चलता है कि लाल सिंह चड्ढा, असल में सिर्फ़ और सिर्फ़ भाग सकता था. जब वो भाग रहा था, उस बीच उसने अपना जीवन जिया. न केवल अपना जीवन जिया, बल्कि और न जाने कितनों को जीना सिखाया. और वो, ये सब कुछ, बेहद निर्मोही ढंग से कर रहा था.
और हां, जिन्हें लगता है कि ये फ़िल्म देश के प्रति प्रेम को कुछ कम सामने रख रही थी, उन्हें मुंह की खानी पड़ेगी. फ़िल्म देखेंगे, तो ख़ुद समझ जायेंगे. वरना इग्नोरेंस का इस दुनिया में कोई इलाज नहीं है.
लाल सिंह के जीवन जीने के इसी तरीक़े में, हम सभी, ख़ुद को ढूंढ पा रहे थे.
फ़िल्म कैसी है:
बॉस! ये शानदार फ़िल्म है. बहुत समय बाद ऐसी फ़िल्म आयी है जो अपने कॉन्टेंट की वजह से राज करेगी.
इस फ़िल्म में ऐसा कोई सुपर-स्टार नहीं है जो लिरिक्स के बगैर डांस करते हुए माहौल सेट कर दे. इस फ़िल्म में कोई ऐसा स्टार नहीं है जो बस अपनी बाहें खोले, और लोग बेहोश हो जाएं. इन सभी चीज़ों के बावजूद, लाल सिंह चड्ढा वो फ़िल्म है जो आपको पकड़ के रखेगी. सिर्फ़ आपको ही नहीं, आपके परिवार को भी. आप इसे देखने जायेंगे और अपने फ़ैमिली ग्रुप में सभी को ये फ़िल्म देखने को कहेंगे.
और हां! इस फ़िल्म में भारतीय इतिहास का ज़िक्र आता रहा है. वो चाहे देश की आज़ादी हो, सिखों के ख़िलाफ़ हुई हिंसा हो, बाबरी मस्जिद ढहाने वाला समय हो या कुछ और हो, उस समय के साथ पूरा इंसाफ़ किया गया है.
यदि आपमें इतना कीड़ा है कि आप इतिहास की तह में जाकर खटमल ढूंढते हैं तो ही आपको समझ में आयेगा कि इक्का-दुक्का चीज़ें अपनी जगह से हिली हैं. ये लिखने वालों कि जीत स्थापित करती है.
निपटान:
ये बात सच है कि लाल सिंह चड्ढा को अंग्रेज़ी फ़िल्म ‘फ़ॉरेस्ट गम्प’ का हिंदी संस्करण कहा जाएगा. लेकिन अतुल कुलकर्णी द्वारा लिखी गयी ये फ़िल्म उस अंग्रेज़ी पिक्चर से बहुत आगे की चीज़ है. भूल जाइये कि अपने फ़ॉरेस्ट गम्प देखी है. याद भी होगी, तो समझ में आएगा कि ये अनोखा मामला है.
अतुल कुलकर्णी, आमिर खान को इस फ़िल्म के लिये जितनी हो सके, शाबाशी मिलनी चाहिये.