जमीअत की अपील, ‘चैनल्स द्वारा प्रसारित नफ़रतों पर सरकार नहीं लगा रही अंकुश, सुप्रीम कोर्ट ही सुनाए अंतिम फैसला’

नई दिल्ली:  जमीअत उलमा-ए-हिंद  के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने तब्लीग़ी प्रकरण पर टीवी चैनलों और प्रिंट मीडिया की द्वेषपूर्ण कवरेज़ के ख़िलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दर्ज कराई थी। इस याचिका में जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की ओर से कहा गया था कि कोरोना वायरस को प्रिंट मीडिया, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने तब्लीग़ी जमात के निज़ामुद्दीन स्थित मरकज़ और खासकर मुसलमानों से जोड़कर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत फैलाई। जमीअत द्वारा दायर याचिका पर गुरुवार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।

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केबल रूल्स 2021 में संशोधन और डिजिटल मीडिया आईटी रूल्स 2021को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में लाए जाने की अर्जी पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि ऐसा लगता है कि वेब पोर्टल पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है। वो जो चाहे चलाते हैं। उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं है। वे हमें कभी जवाब नहीं देते। वो संस्थाओं के खिलाफ बहुत बुरा लिखते है। लोगों के लिए तो भूल जाओ, संस्थान और जजों के लिए भी कुछ भी मनमाना लिखते कहते है। हमारा अनुभव यह रहा है कि वे केवल वीआईपी की आवाज सुनते हैं।

उन्‍होंने कहा कि आज कोई भी अपना टीवी चला सकता है। Youtube पर देखा जाए तो एक मिनट में इतना कुछ दिखा दिया जाता है। चीफ जस्टिस ने कहा, ‘मैंने कभी फेसबुक, ट्विटर  और यू ट्यूब द्वारा कार्यवाही होते नहीं देखी। वो जवाबदेह नहीं हैं वो कहते हैं कि ये हमारा अधिकार है।’सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मीडिया के एक वर्ग की दिखाई खबरों को  सांप्रदायिक रंग दिया गया था, इससे देश की छवि  खराब हो सकती है।’

क्या बोले अरशद मदनी

तब्लीग़ी जमात प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई मामलों में अदालतों द्वारा फटकार के बाद मीडिया ने भी अपना रवैया नहीं बदला है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से इस संबंध में, हमने सरकार से बार-बार इन बेलगाम द्वेषपूर्ण कवरेज़ पर अंकुश लगाने की अपील की है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है, इसलिए हम चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपना फैसला करे।